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रामभक्त, जिसने अयोध्या में जान देकर सैकड़ों जिंदगी बचाईं:दूर फेंका था बम, अब बूढ़े माता-पिता को 22 जनवरी के समारोह के निमंत्रण का इंतजार
अयोध्या में 31 साल पहले राम मंदिर को लेकर 6 दिसंबर 1992 को देशभर से कारसेवक जुटे थे। राजस्थान के अजमेर से भी 28 लोगों का दल गया था। शाम की गाड़ी से सभी को वापस लौटना था। इस दल में 19 साल का अविनाश भी था। वह अयोध्या पहुंचकर घायलों को हॉस्पिटल पहुंचाने के काम में जुट गया था।
टेढ़ा नाम की जगह पर अविनाश और दूसरे लोग राहत कार्यों में जुटे हुए थे। तभी एक अनजान व्यक्ति ने बम फेंक दिया। अविनाश ने बम पकड़ लिया और सामने की तरफ दो मंजिला मकान पर फेंका।
बम छज्जे के नीचे जाकर फट गया। बम फटने के बाद छर्रे अविनाश को जाकर लगे थे। उसे हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
अविनाश की तरह कई बलिदानी कारसेवक अयोध्या में राम मंदिर बनने का सपना लेकर इस दुनिया को छोड़ गए थे। अब 22 जनवरी को अयोध्या में श्रीरामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही उनका सपना पूरा होगा। इस खास मौके पर भास्कर ने अजमेर के फॉयसागर में रहने वाले अविनाश माहेश्वरी के माता-पिता से बात कर पूरा घटनाक्रम जाना…
अविनाश की बुजुर्ग मां ने खोला दरवाजा
अविनाश के घर में 72 साल की बुजुर्ग मां अक्षय माहेश्वरी और 76 साल के पिता मानकचंद माहेश्वरी रहते हैं। भास्कर टीम उनके घर पहुंची। घंटी बजाने पर अविनाश की मां आई। हमने परिचय दिया तो अंदर आने के लिए कहा। उन्होंने हमें ड्रांइग रूम में बैठाया और पति को बुलाने अंदर चली गई। कमरे में सोफा था और एक दीवार पर अविनाश की फोटो लगी थी। इतने में अविनाश के माता-पिता आ गए। राम मंदिर बनने से शुरू हुई बात धीरे-धीरे 1992 के उस खौफनाक हादसे तक पहुंच गई…
अयोध्या जाने के लिए लिखित आमंत्रण-पत्र का इंतजार
अविनाश के माता-पिता ने बताया कि राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के लिए उन्हें वॉट्सऐप पर आमंत्रण मिला है। उन्हें लिखित आमंत्रण-पत्र का इंतजार है। उन्होंने रिजर्वेशन भी करवा लिया है, ताकि वे अपनी पत्नी के साथ रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव में साक्षी बन सकें। वे बोले- ‘जिस काम के लिए हमारा बेटा वहां गया और अपना बलिदान दिया, वह काम अब पूरा हो रहा है। हमारे बेटे का बलिदान सार्थक हुआ। उसके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।’
अयोध्या जाने से मना करने पर खूब रोया था
अविनाश की मां ने बताया कि हमारा पूरा परिवार 1982 में अजमेर आया था। मेरे पति आरएसएस से जुड़े थे। अविनाश भी उन्हें देखकर 12 साल की उम्र में संघ से जुड़ गया था। आरएसएस की विचारधारा और कार्य उसे पसंद आने लगा था। वह नियमित शाखा में जाता था। पढ़ने में भी होशियार था
आगे उन्होंने बताया- 26 नवंबर 1992 की बात है, अविनाश अयोध्या जाने की जिद्द करने लगा था। मुझसे बोला- ‘मैं अयोध्या जाऊंगा।’ मैंने उसे मना किया था। वह गुस्से में अपने कमरे में गया और रोते-रोते सो गया था। उसने अयोध्या जाने की ठान ली थी।
बिना बताए दोस्त के साथ गया अयोध्या
अविनाश की मां ने बताया कि- 28 नवंबर को सुबह 5 बजे उसका दोस्त घर पर आया था। उसने अविनाश को आवाज लगाई थी। दोस्त की आवाज सुनने के बाद वह नींद से उठा और अपना बैग लेकर चला गया।
घर से निकलने के बाद अपने पिता की डिस्पेंसरी पर गया था। पिता को अयोध्या जाने की बताई थी। पिता से मिलने के बाद दोस्त के साथ अयोध्या के लिए रवाना हो गया था।
पिता ने कहा था- ‘जो भी काम दे अच्छे से करना’
मानकचंद माहेश्वरी 2008 को मेडिकल डिपार्टमेंट से रिटायर्ड हुए थे। उस समय को याद करते हुए वे बोले- तब पता चला था कि आरएसएस से जुड़े लोग अयोध्या जा रहे हैं। बेटे ने जाने की जिद्द की थी। मैंने उसे कहा था, ‘पहले मैं जाऊंगा फिर तू चला जाना, लेकिन वह जाने की जिद्द करता रहा।’ उसकी जिद्द के आगे मैंने भी परमिशन दे दी।
28 नवंबर 1992 को घर से निकलने के बाद मुझसे डिस्पेंसरी मिलने आया था। मैंने उसे कहा था- ‘जो भी तुम्हें काम दे, वह सब अच्छे से कर लेना।’ अयोध्या के लिए अजमेर से 28 जनों की एक टोली गई थी।
6 दिसंबर 1992 को बेटे के बलिदान की मिली खबर
अविनाश के पिता आगे कहते है- आरएसएस से संपर्क होने के कारण 6 दिसंबर को बेटे के बलिदान की जानकारी मिल गई थी। पत्नी को इस बारे में कुछ नहीं बताया था। 7 दिसंबर से देश में कर्फ्यू लग गया था।
बेटे की मौत के बाद मिली उसकी चिट्ठी
इस बीच अविनाश की मां बोलीं- 28 नवंबर को उसे आखिरी बार देखा था। उस समय फोन वगैरह ज्यादा नहीं थे, ऐसे में बात नहीं हो सकी थी। 30 नवंबर को उसकी बड़ी बहन सुमन काबरा का बर्थ-डे आता है। उसने अपनी बहन को चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी उसके निधन के बाद 9 दिसंबर को मिली थी। चिट्ठी में लिखा था-
आगे अविनाश की मां ने कहा- 7 दिसंबर को आस-पड़ोस के लोगों का घर आना शुरू हो गया था। वे अखबार में अयोध्या में किसी अविनाश पांडे के साथ हुए हादसे की खबर पढ़कर आए थे। तब तक अविनाश के पिता ने मुझे कुछ नहीं बताया था।
उन दिनों को याद करते हुए आगे बोलीं- दिसंबर 1992 में देश भर में कर्फ्यू लगने के कारण सब बंद था। हमारी कॉलोनी में भी किसी को नहीं आने दिया जा रहा था। दूध और पेपर वालों की आवाजाही बंद हो गई थी।
8 दिसंबर को मेरी मां भी आ गई थी। पड़ोसी भी घर पर आ गए थे। रात में पड़ोस में रहने वाली भाभी ने मुझे सोने के लिए कहा था, लेकिन पता नहीं शायद नींद भी आई होगी या नहीं। पड़ोसियों और घर में आए लोगों को देख कुछ अनहोनी का डर लग रहा था।
मैं घर से बाहर निकली तो पड़ोसी ने समझाकर वापस घर भेज दिया। थोड़ी देर बाद मेरे पति भी घर पर आ गए थे। 8 दिसंबर को अविनाश के बलिदान के बारे में मुझे बताया था। 9 दिसंबर को बेटे की बॉडी घर पर लाई गई थी।
बेटे के जख्मों को छुपाने की कोशिश
बातचीत के दौरान अपने इकलौते बेटे को खोने का गम अविनाश के माता-पिता के चेहरे पर साफ देखा जा सकता था। 31 साल बाद बीत गए, लेकिन अब भी दोनों के लिए उस हादसे को दोबारा याद करना किसी यातना से कम नहीं था।
बात आगे बढ़ी तो अविनाश के पिता ने बताया कि – 8 दिसंबर को एसडीएम का फोन आया था। जयपुर-अजमेर बाईपास पर अधिकारियों के साथ शिनाख्त करने के लिए बुलाया गया था। वहां जाकर बेटे की शिनाख्त की थी।
बेटे के गले और चेहरे पर जख्म थे। बेटे के जख्मी चेहरे को उसकी मां कैसे देख पाती। वो दुनिया तो छोड़कर चला ही गया था लेकिन एक मां को कैसे समझाता। डॉक्टर प्रवीण को बुलाकर बेटे के जख्मों पर मरहम-पट्टी कराई।
अंतिम यात्रा में मिलिट्री ने भीड़ पर बरसाए थे डंडे
8 दिसंबर की रात को पत्नी को हादसे के बारे में बताया था। 9 दिसंबर को आरएसएस की तरफ से कॉल आया था कि जुलूस के रूप में अंतिम यात्रा निकाली जाए। माहौल खराब न हो, इसे देखते हुए मैंने मना कर दिया था।
शहर में कर्फ्यू होने के बाद भी अंतिम दर्शन करने भीड़ लग गई थी। चारों तरफ अविनाश अमर रहे के नारे लग रहे थे। इस बीच मिलिट्री ने भीड़ पर डंडे भी बरसाए थे। कई बुजुर्गों के चोट भी आई थी। इसके बावजूद भी अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे।
विहिप ने 2 लाख का चेक देना चाहा
पिता ने बताया कि घटना के करीब एक महीने बाद विश्व हिंदू परिषद से जुड़े लोग घर पर आए थे। उन्होंने 2 लाख का चेक देना चाहा। मैंने उसे लेने से मना कर दिया था। इसके बाद बेटे के नाम से अजमेर के भजनगंज में स्कूल खोला गया था। शुरुआत में 28 बच्चों के साथ स्कूल को खोला था। वर्तमान में स्कूल उच्च माध्यमिक हो गया है और 650 बच्चे वहां पढ़ रहे हैं।
2 साल बाद घटना स्थल पर गए थे
अविनाश के माता-पिता घटना के 2 साल बाद उस जगह गए थे, जहां अविनाश के साथ हादसा हुआ था। उन्होंने बताया कि वहां एक व्यक्ति ने अपना नाम बताए बिना पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी थी। वह व्यक्ति डर-डर कर घटना के बारे में बता रहा था। इसके बाद वे चार धाम यात्रा पर गए थे।
वॉट्सऐप पर निमंत्रण मिला, लिखित निमंत्रण का इंतजार
अविनाश माहेश्वरी के पिता ने बताया कि 22 जनवरी को रामलला के दर्शन के लिए 31 सालों तक इंतजार किया हैं। उन्होंने कहा कि लिखित निमंत्रण नहीं मिलने पर यहां पर ही अखंड श्री रामायण पाठ का आयोजन रखेंगे।