भारत का संविधान हर व्यक्ति को चाहे वह स्त्री हो या पुरुष एक ही नज़र से देखता है। भारत के संविधान में सभी एक बराबर हैं। मगर समाज ने जिस तरह से महिलाओं के प्रति हीन भावना रखी है उस ने एक लंबे वक्त तक महिलाओ को असहज रखा हुआ है। इसी असहजता से उबारने के लिए कानून ने महिलाओ को अधिकार प्रदान किये हैं ताकि वे भी बराबरी से जी सकें। इन अधिकारों में गरिमा से जीना यानी Rights of Dignity जैसे अधिकार शामिल हैं।
आइये जानते हैं महिलाओं को प्राप्त अधिकार कौन से हैं?
बराबर मेहनताना
पुरुषों को उन के किये गए काम के लिए ज़्यादा पैसे दिए जाते थे वहीं औरतों को अपेक्षाकृत कम। यदि बात सैलरी की हो तो लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है। समान मेहनताने के लिए महिलाओं के पास equal remuneration यानि कि समान मेहनताने का अधिकार है और यह अधिकार उन्हें इक्वल रेमुनेरशन अधिनियम के तहत प्राप्त होता है।
गरिमा और शालीनता का अधिकार:
rights of dignity गरिमा और शालीनता का अधिकार हर किसी महिला के पास है। किसी भी महिला को किसी भी मामले में परीक्षण की आवश्यकता हो तो यह दूसरी महिला द्वारा या उसकी निगरानी में हो यह अधिकार भी महिलाओं को प्राप्त है। अपनी गरिमा और शालीनता का अधिकार (Rights of dignity) हर महिला के पास संविधान द्वारा प्रदत्त है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51क(ङ) में उल्लेखित मौलिक कर्तव्य में महिलाओं की गरिमा हेतु अपमान जनक प्रथाओं को त्यागने की बात कही गयी है।
कार्यस्थल पर उत्पीड़न से सुरक्षा का अधिकार
यदि किसी महिला के साथ उस के कार्यस्थल पर शारिरिक या मानसिक किसी भी प्रकार का उत्पीड़न ( Rights against harassment ) होता हो तो महिला के पास यह अधिकार है कि वो कानून की सहायता ले कर उन पर शिकायत दर्ज करा सकती हैं। उत्पीड़न के ख़िलाफ़ अधिकार (rights of harassment) हर महिला के पास है।
घरेलू हिंसा के विरुद्ध अधिकार
किसी भी महिला के पास यह अधिकार है कि वह घर में अपने प्रति हो रही किसी भी हिंसा के विरुद्ध अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 498 (IPC 498) के तहत पत्नी, या महिला लिव इन पार्टनर अपने विरुद्ध हो रही हिंसा के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करा सकती है। धारा 498 के तहत (IPC 498) किसी भी महिला के साथ मौखिक, आर्थिक, शारीरिकी और मानसिक हिंसा अपराध है। धारा 498 के तहत (IPC 498) इस अपराध के लिए तीन साल तक की ग़ैर जमानती सजा का प्रावधान है।
ज़ीरो एफ़ आई आर का अधिकार (zero FIR)
कानून द्वारा महिलाओं को ज़ीरो एफ़ आई आर की भी सुविधा प्रदान की गई। ज़ीरो एफ़ आई आर का अर्थ होता है यदि महिला के साथ कुछ अपराध घटित होता है तो वह उस वक़्त अपनी शिकायत किसी किसी भी पुलिस थाने में कहीं से भी दर्ज कर सकती है। इस ज़ीरो एफ़ आई आर को बाद में उस थाने तक पहुंचा दिया जाएगा जहाँ घटना या अपराध घटित हुआ होगा।
भरण-पोषण अधिकार
भरण पोषण के अधिकार का मतलब मेंटेनेंस से है। डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट की धारा 18 महिलाओं को यह अधिकार प्रदान करती है कि महिला अपने पति द्वारा जीवन भर भरण-पोषण का अधिकार रखेगी। तलाक हो जाने के पश्चात भी महिला के पास यह अधिकार धारा 25 के अंतर्गत रहता है।
विवाहित बेटी का अनुकम्पा नियुक्ति का अधिकार
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कर्नाटक सरकार बनाम अपूर्वा श्री के मामले में बेटी को शादी के बाद दूसरे घर का होने जाने की बात को दकियानूसी करार देते हुए यह निर्णय दिया गया था कि विवाहित बेटी अनुकम्पा नियुक्ति के आधार पर सरकारी नौकरी का अधिकार रखती है।
मैटरनिटी लीव या मातृत्व अवकाश का अधिकार
संविधान द्वारा अनुच्छेद 42 के अंतर्गत महिलाओं को जो किसी सरकारी संस्थान या निजी संस्थान में कार्यरत हैं मैटरनिटी लीव या मातृत्व अवकाश लेने का अधिकार है यह मैटरनिटी लीव 12 हफ्तों की होती है जिसे महिलाएं अपने हिसाब से ले सकती हैं।
स्त्री धन पर अधिकार
विवाह के वक़्त वधु को मिले हुए उपहार को स्त्री धन कहा जाता है जिस पर महिला का पूर्ण अधिकार होता है। यदि ससुराल पक्ष की ओर से स्त्री धन पर कब्ज़ा कर लिया जाए तो महिला आई पी सी की धारा 406 के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है।
मुफ़्त विधिक सहायता
महिला की आर्थिक स्थिति कैसी भी हो मगर उन के पास यह अधिकार है कि वह न्यायालय में अपने किसी मामले के लिए सरकारी ख़र्चे पर अधिवक्ता की मांग कर सकती है।
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